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विजय दशमी और दशहरा पर्व का अर्थ जाने

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प्रकाशनार्थ ।
भारत देश में विजय दशमी अथवा दशहरा पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ।यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें जीवन के गहरे रहस्य को दिखाते हुए जीवन जीने की कला को भी सिखाता है।दशहरा शब्द के विषय में विप्र संजीवनी परिषद गुरुकुल के संस्थापक डॉ अशोक पांडेय ने बताया कि
दशहरा शब्द की दो तरह से व्युत्पत्ति करके अर्थ किया जा सकता है ।(१)दश अदत्तोपादानहिंसादिदशविधानि हरतीति दशहरा (२)दशजन्मकृतानि पापानि हरतीति दशहरा । दस उपपद पूर्वक + हृञ् हरणे अथवा हृ प्रसह्यकरणे धातु से + “हरतेरनुद्यमनेऽच् ।इस सूत्र से अच् प्रत्यय करके टाप होकर दशहरा शब्द बनता है ।ज्यैष्ठशुक्लदशमी को भी दशहरा कहते है किंतु यहाँ हम अश्विन मास शुक्ल दशमी दशहरा पर विचार करते है । दस का अर्थ है दस विध पाप कर्म करने वाला अथवा दसमुख वाला रावण क्योंकि दस मुख विज्ञान की दृष्टि में भी संभव नहीं इसलिए इसका अर्थ शास्त्रों में दसविधपापकर्मा रावण ही हो सकता है ।इसलिए वह दशमुख भी कहलाता था।रावण का वध आज के दिन ही हुआ था इसलिए दशहरा पर्व कहा जाता हैं ।सनातन धर्म के लोग रावण का पुतला दहन करते हैं ।डॉ पांडेय ने कहा कि आजकल एक नई परंपरा शुरू हो गई है जो पाप कर्म में लिप्त रहने वाले लोग हैं वे रावण दहन पर शोक प्रकट करते हैं यह राष्ट्र के लिए घातक है बुरे विचारो का समर्थन कभी नहीं करना चाहिए ।
दशहरा को विजयादशमी भी कहा जाता है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर सत्य और धर्म की रक्षा की थी। रावण अत्यंत बलशाली और विद्वान था, परंतु उसने अहंकार और अधर्म का मार्ग अपनाया। श्रीराम ने धर्म और न्याय की रक्षा के लिए उसका नाश करते हुए संदेश दिया कि शास्त्र केवल पढ़ने के लिए नहीं अपने जीवन में धारण करने के लिए होता है जो नहीं करता उसकी रावण जैसी दुर्दशा होती है । तभी से यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।
किंतु कई पुराणों में कथा आती है कि देवी दुर्गा जी ने नौ दिन तक महिषासुर नामक राक्षस से युद्ध किया और दसवें दिन उसे पराजित कर संसार को भयमुक्त किया था । इसीलिए नवरात्र के उपरांत दशहरा का पर्व अत्यंत उत्साह से मनाया जाता है।
दशहरा मनाने की परंपराएँ।
भारत के विभिन्न प्रांतों में दशहरा का उत्सव अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर नौ दिन तक रामलीला का मंचन होता है और दशमी के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है। इसे देखने के लिए हजारों लोग एकत्रित होते हैं।
विहार बंगाल में शस्त्र पूजन और वाहन पूजन की भी परंपरा है। लोग मानते हैं कि इस दिन शस्त्र और साधनों की पूजा करने से शक्ति और सफलता प्राप्त होती है।महाराष्ट्र में लोग ‘शमी’ के पत्तों को स्वर्ण पत्र मानकर आपस में बांटते हैं और सौभाग्य की कामना करते हैं।
बंगाल और पूर्वी भारत में यह दिन दुर्गा पूजा के समापन के रूप में भी मनाया जाता है।
दशहरा केवल उत्सव या आनंद का पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन में आदर्शों और मूल्यों की शिक्षा देता है। यह हमें बताता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः विजय सत्य और धर्म की ही होती है। यह पर्व हमें अपने भीतर के अहंकार, लालच और अन्य दुर्गुणों को पराजित करने की प्रेरणा देता है।
दशहरा भारतीय संस्कृति का ऐसा पर्व है जो सामाजिक, धार्मिक और नैतिक तीनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमें धर्म, न्याय और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। वास्तव में, जब-जब समाज में अधर्म और अन्याय बढ़ेगा, तब-तब दशहरे का संदेश हमें मार्गदर्शन करता रहेगा और समाज को यह सीख देगा कि कभी भी धन बल प्राप्त करने पर किसी को कष्ट नहीं देना चाहिए ।-श्री वत्साचार्य जी महाराज (डॉ अशोक पाण्डेय )पीठाधीश्वर-शिवधामकाशी अयोध्या ।

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