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Crime khulasha news

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फसल अवशेष प्रबंधन पर जागरूकता कार्यक्रम शुरू

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विकास खंड स्तरीय फसल अवशेष प्रबंधन पर जागरूकता कार्यक्रम के विकास खण्ड-कैसरगंज बहराइच , जनपद बहराइच पर कृषि विज्ञानं केन्द्र, बहराइच प्रथम द्वारा आयोजित गोष्ठी मुख्य अतिथि सन्दीप सिंह विशेन ब्लाक प्रमुख कैसरगंज बहराइच ने पराली की समस्या दूर करने के लिए सी एस आई आर -आई आई पी देहरादून द्वारा पराली समेत तमाम बायोमास अवशेषों को खाद, कैमिकल्स व बिजली बनाने जैसे उपयोगी साधनो की बदलने के लिए शोध अभी जारी है।बड़ी मात्रा में पराली जलाने से वातावरण के चारो ओर धुवा छाया रहता है तो वातावरण के लिए स्वास्थ्यवर्धक नहीं है।फसल को खेत में न जलाने के लिए कृषको को बताया । फसल अवशेष प्रबंधन को आज की जरुरत बताया। उन्होने बताया कि विभिन्न फसलों की कटाई के बाद बचे हुए डंठल तथा गहराई के बाद बचे हुए पुआल, भूसा, तना तथा जमीन पर पड़ी हुई पत्तियों आदि को फसल अवशेष कहा जाता है।


विगत एक दशक से खेती में मशीनों का प्रयोग बढ़ा है। साथ ही खेतीहर मजदूरों की कमी की वजह से भी यह एक आवश्यकता बन गई है। ऐसे में कटाई व गहराई के लिए कंबाईन हार्वेस्टर का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है, जिसकी वजह से भारी मात्रा में फसल अवशेष खेत में पड़ा रह जाता है। कृषि विज्ञानं केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ बी पी शाही ने बताया कि फसल अवशेष खेत में जो रह जाता है उसका समुचित प्रबन्धन एक चुनौती है। किसान अपनी सहुलियत के लिए इसे जलाकर प्रबन्धन करते हैं। इसके पीछे किसानों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि कुछ फसलें जैसे कि धान-गेहूँ के जल्दी मिट्टी में गलते नहीं हैं। साथ ही धान की रोपाई के समय खेत के किनारों पर इकट्ठे होने से मजदूरों के पैरों में चुभते हैं।

अलग से अवशेष प्रबन्धन में धन, मजदूर, समय आदि की आवश्यकता होती है और दो फसलों के बीच उपयुक्त समय के अभाव की वजह से भी वे ऐसा करने के लिए बाध्य हैं। इसी क्रम में केन्द्र, के बैज्ञानिक पी के सिंह ने बताया कि हमारे देश में सालाना 630-635 मि. टन फसल अवशेष पैदा होता है। कुल फसल अवशेष उत्पादन का 58 प्रतिशत धान्य फसलों से 17 प्रतिशत गन्ना, 20 प्रतिशत रेशा वाली फसलों से तथा 5 प्रतिशत तिलहनी फसलों से प्राप्त होता है। सर्वाधिक फसल अवशेष जलाने की रिपोर्ट पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं परन्तु आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में फसल अवशेष जलाने की प्रथा चल पड़ी है और बदस्तुर जारी है।

जिला कृषि अधिकारी श्री सतीश कुमार पांडे के अनुसार फसल अवशेष प्रबन्धन की विधियों की जानकारी न होने व होते हुए भी किसान अनभिज्ञ बने हुए हैं। आज कृषि के विकसित राज्यों में मात्र 10 प्रतिशत किसान ही अवशेषों का प्रबन्धन कर रहे हैं। किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन हेतु 50% का अनुदान दिया जाएगा और फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्र स्थापित करने हेतु 80% तक अनुदान दिया जाएगा इसके लिए हमारे किसान भाई कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि भवन में संपर्क करें ।साथ ही पराली न जलाने की शपथ ग्रहण दिलाया गया ।ए डी ओ एजी प्रेम कुमार सारस्वत कृषि विभाग द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रम को भी विस्तृत रूप से जानकारी दी गयी ।

केन्द्र के डॉ शैलेंद्र सिंह ने बताया कि भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रासः अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नत्रजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश और 60 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है। खेतों के अवशेषों को जलाने से भूमि की संरचना में क्षति होने से जब पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में स्थानान्तरण नहीं हो पाना तथा अत्यधिक जल का निकासी न हो पाना प्रमुख समस्या बनकर उभर रही है डॉ निरज सिंह ने डीकंपोजर के प्रयोग द्वारा पराली नियंत्रण के बारे में बताते हुए किसानों को बताया कि 20 ग्राम डी कंपोजर को 200 लीटर पानी में 2 से 3 किलोग्राम गुड़ में घोलकर 1 एकड़ में प्रयोग किया जा सकता है । केन्द्र के डॉ पी के सिंह ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से मृदा में होने वाली हानियो से भूमि के कार्बनिक पदार्थों का ह्रास होने के साथ फसल अवशेषों से मिलने वाले पोषक तत्वों से मृदा वंचित रह जाती है।

उन्होने बताया कि जमीन की ऊपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट व केंचुआ आदि भी नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा ओजोन परत का ह्रास होना, ग्रीन हाउस गैसों का अधिक मात्रा में उत्सर्जन से वैश्विक तपन को बढ़ावा मिलता है, अतः किसी भी दृष्टिकोण से फसल अवशेषों को जलाना उचित नहीं है अतः किसानों को फसल अवशेष प्रबन्धन के इस विकल्प पर अमल करने की जरूरत नहीं है। संरक्षण कृषि प्रणाली का अंगीकरण व फसल विविधीकरण द्वारा अवशेष जलाने की समस्या से निजात मिल सकता है। अतः अवशेषों को पशुचारा अथवा औद्योगिक उपयोग के लिए इकट्ठा करना, अवशेषों को मिट्टी में मिश्रित करना व फसल की कटाई के उपरांत रोटावेटर से जुताई कर एक पानी लगा देने से फसल अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं फिर बाद में अगली फसल की बिजाई या रोपाई आसानी से की जा सकती है।

डा निरज सिंह बताया कि सुपर एस.एम.एस या स्ट्रा चोपर से फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काटकर भूमि पर फैलाएँ। तत्पश्चात हैप्पी सीडर द्वारा गेहूँ की सीधी बिजाई करेl फार्मर चेन्ज ऐजेन्ट मो रहीश खान ने जीरो ड्रिल, रोटोवेटर, रीपर-बाईन्डर व स्थानीय उपयोगी व सस्ते यन्त्रों को भी फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु अपना कर फसल अवशेषों को मल्चर द्वारा मिट्टी में मिला कर lउल्टा हल द्वारा फसल अवशेषों को मिट्टी में दबा कर l प्रदूषण के साथ साथ मृदा उर्वकता को भी संयमित कर प्राकृतिक दुष्परिणामों से बचा जा सकता है। रबी फसलो गेहूँ,सरसो,मसूर,मटर एवं अलसी की प्रजाति के बारें में विस्तृत रूप से जानकारी दी गयी कृषको को जानकारी दी गयी । कार्यक्रम का समापन करते हुए एस डी ओ सदर उदय शकर सिह बताया कि पराली के प्रयोग मल्चिंग के रूप में वह कंपोस्ट बनाकर मशरूम उत्पादन में प्रयोग करने में किया जा सकता है इसके द्वारा किसान अपनी आय को दो गुनी कर सकते हैं। इसके साथ पराली न जलाने का शपथ भी दिलाया गया।इस कार्यक्रम में समेत 150 कृषको ने भाग लिया ।
रिपोर्ट जितेंद्र तिवारी
संपादक क्राइम खुलासा न्यूज़

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